बेहतर सामुदायिक प्रबंधन से अति कुपोषित बच्चे होंगे सुपोषित: डॉ. कौशल किशोर 

 
 
• समुदाय स्तर पर जरुरी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना जरुरी: संजय कुमार सिंह 
• अति कुपोषण एवं प्रारंभिक विकास विफलता पर राज्य स्तरीय कार्यशाला का हुआ आयोजन 
• 80 फीसदी मष्तिष्क का विकास जीवन के प्रथम तीन वर्षों के अंदर 
 
पटना-
अति-कुपोषित बच्चों को सुपोषित करना एक बड़ी चुनौति के साथ सभी की जिम्मेदारी भी है. जिसमें समुदाय स्तर पर अति-कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने का प्रयास एक प्रभावी पहल है. बच्चों में कुपोषण उनकी शारीरिक एवं मानसिक दक्षता में कमी करने के साथ देश के विकास में भी बाधक साबित होती है. उक्त बातें समेकित बाल विकास सेवाएं के निदेशक डॉ. कौशल किशोर ने अति कुपोषण एवं प्रारंभिक विकास विफलता पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला में बतायी. डॉ. किशोर ने बताया कि अति-कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने की दिशा में पोषण पुनर्वास केंद्र की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन सभी अति-कुपोषित बच्चों को कुपोषण से बहार निकालने में सिर्फ पोषण पुनर्वास केंद्र पर्याप्त नहीं है. इसके लिए समुदाय स्तर पर अति-कुपोषित बच्चों की पहचान एवं इनके बेहतर प्रबंधन पर ध्यान देने की अधिक जरूरत है.  
समुदाय स्तर पर जरुरी दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना जरुरी: 
कार्यशाला को संबोधित करते हुए सचिव स्वास्थ्य सह राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह ने बताया कि कुपोषण को दूर करने में आहार विविधिता को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है. लेकिन सामाजिक विकास के क्रम में आहार विविधिता को नजरंदाज किया गया. लेकिन अब फिर से श्री अन्न यानी मोटे आनाज की उपयोगिता बढ़ाकर कुपोषण दूर करने पर सरकार विशेष ध्यान दे रही है. उन्होंने कहा कि समुदाय स्तर पर सुपोषण को बढ़ावा देने के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों पर जरुरी दवाओं जैसे आईएफए, विटामिन ए सिरप आदि की पूर्व आपूर्ति सुनिश्चित करने में स्वास्थ्य विभाग मदद करेगा. इससे सही समय पर लाभुकों के लिए दवाएं उपलब्ध हो सकेंगी एवं इससे कुपोषण को दूर करने में सहूलियत भी होगी. 
कुपोषण से बढ़ता है परिवार पर आर्थिक बोझ: 
कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, जीविका, राहुल कुमार ने कहा कि अति गंभीर कुपोषण से ग्रसित बच्चे के कारण परिवार पर आर्थिक बोझ पड़ता है. बच्चे के उपचार के लिए उसके अभिभावक को खर्च करना पड़ता है. इसलिए जरुरी है कि सामुदायिक स्तर पर जागरूकता फैलाई जाये. पीएमसीएच के शिशु रोग विभाग के एचओडी डॉ. भूपेन्द्र नारायण ने बताया कि अति गंभीर कुपोषण से ग्रसित बच्चा आगे चलकर कई बिमारियों से ग्रसित होता है और शिशु मृत्यु का यह एक प्रमुख कारण है.    
बच्चों को अति कुपोषित श्रेणी में जाने से पहले बचाना जरुरी:
राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, शिशु स्वास्थ्य डॉ. बिजय प्रकाश राय ने बतया कि बच्चों को कुपोषण से बताना जरुरी है. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस में नियमित रूप से क्षमतावर्धन किया जाता है. हमें प्रयास करना है कि बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती करने की जरुरत नहीं पड़े. इसके लिए हमें समुदाय में पोषण की महत्ता के संदेश को हर स्तर पर प्रसारित करने की जरुरत है. 
कार्यशाला में यूनिसेफ के पोषण विशेषग्य रबी नारायण पाढ़ी ने बताया कि स्वास्थ्य एवं पोषण की सेवाओं को एक साथ अति गंभीर कुपोषित बच्चे तक पहुंचाने की जरुरत है. आंगनवाड़ी केंद्रों पर वृद्धि निगरानी के साथ बच्चे की माताओं को बताया जाये ताकि वह भी अपने बच्चे की पोषण संबंधी समस्याओं से एकाकार हो सकें. यूनिसेफ की शिवानी धर ने बताया कि बच्चे के मष्तिष्क का 80 फीसदी विकास उसके जीवन के पहले तीन वर्षों में होता है इसलिए जरुरी है गर्भवती माता के संपूर्ण पोषण एवं नवजात के लिए पहले 6 माह तक सिर्फ स्तनपान की महत्ता को समझा जाए. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार राज्य के 42.9 प्रतिशत बच्चे नाटापन से ग्रसित हैं जबकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में नाटापन का प्रतिशत 48.3 प्रतिशत था. पूसा कृषि विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सह मुख्य वैज्ञानिक डॉ. उषा सिंह ने बताया कि राज्य में प्रचुर खाद्य पदार्थों की उपलब्धता के बावजूद कुपोषण मौजूद है. यह जरुरी है कि उपलब्ध खाने की वस्तुओं में छुपी हुई पोषण के खजाने को पहचान कर उसे नियमित खान पान में शामिल किया जाये.  
कार्यक्रम में जीविका, यूनिसेफ, कृषि विभाग, स्वास्थ्य, समेकित बाल विकास सेवाएं, विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित सहयोगी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने शिरकत की. कार्यशाला का संचालन समेकित बाल विकास सेवाएं के पोषण सलाहकार डॉ. मनोज कुमार ने किया.

रिपोर्टर

  • Swapnil Mhaske
    Swapnil Mhaske

    The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News

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